छूकर भी नित बुलंदियों को ,
जो सरल बना हुआ
यह कैसा स्वभाव ,
जो पौधा से वृक्ष बना हुआ
निर्मल नीर समान ,
यह अमृत सा उत्तम है
भांति-भांति सरल सुधोपम,
वाणी इसकी सर्वोत्तम है
धरा की रज-रज में लोट कर,
जो बड़ा हुआ
सरक-सरक घुटनों के बल पर,
जो खड़ा हुआ
शीतल,मंद, सुगंध
इसकी काया का प्रभाव है
यह कैसा स्वभाव,
जहां अवगुणों का अभाव है
उद्देग नहीं जरा भी दुःख पर,
सुख में यह निस्पृह है
मन के अंतरंग भावों में
सुरस है ,संसार है
सुधारक है, विचारक है,
सृजनशक्ति अभिधारक है
ईर्ष्या नहीं समीप इसके,
हर मानव उपकारी है
यह कैसा स्वभाव,
जो सर्वहितकारी है ।।
✍️योगेंद्र सिंह राजावत
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