नवीन कंठ दो की में नवीन गान गा सकूँ
स्वतंत्र देश की नवीन आरती सजा सकू
नवीन दृष्टि का नया विधान आज हो रहा
नवीन आसमान में विहान आज हो रहा
युगांत की व्यथा लिए अतीत आज सो रहा
दिगंत में बसंत का भविष्य बीज बो रहा
प्रबुद्ध राष्ट्र की नवीन वंदना सुना सकूँ
स्वतंत्र देश की नवीन आरती----------!
सभी कुटुम्ब एक कौन पास कौन दूर है
नए समाज का हरेक व्यक्ति एक नूर है
भविष्य द्वार मुक्त है बढे चलो , चले चलो
मनुष्य बन मनुष्य से गले गले मिले चलो
नवीन भाव दो की में नवीन गान गा सकूँ
स्वतंत्र देश की ------------------------!

1 comments:
Click here for commentsVery nice line
आपका बहुमूल्य समय देने के लिए धन्यवाद | ये पोस्ट आपको कैसी लगी |
इस पोस्ट के बारे में आपकी कोई राय है तो कृपया comment कर बताये ConversionConversion EmoticonEmoticon