'नन्ही जान'
बरस बीत गये, किस
कदर यूँ चुप हो तुम |
ना कोई फ़िक्र का
एहसास है तुम्हे
फिर भी किस कदर “ना-खुश”
हो तुम ||
क्या ये चाहत नहीं
है तुम्हारी भी
रहे ‘नन्ही जान’ का
जीवन खुशियों से भरा हर दम
|
देखो , देख भी लो एक
बार
ढूँढती है किस कदर
वो पिता का प्यार |
उसकी हर नजर में,
नजर आती है ये बात
जैसे पूछती हो उसकी ‘आँखे’
क्या मै नहीं हूँ
हकदार ?
नन्ही है, कर भी
लेगी अच्छा कुछ
फिर क्या तुम मिला
सकोगे उससे आँख ?
ना जीने की चाह में
, कर ना देना तुम कोई भूल |
बेटी है चाहती है बस
प्यार
और जिंदगी में सूकून
बस सूकून ||
लेखक -
मोहित G. सोनी
(M.Sc. * B.Ed. )
उदयपुर ,राजस्थान
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