पलाश के पुष्प palash ke pushp palash ka ped poem on palash kavita

 







पलाश की छाँव में बैठा 

मैं ढूँढ रहा हूँ मुझको 

पिरोए जा रहा हूँ माला 

आने वाले बसंत के लिए ।

पतझड़ में जो महक रहा 

रंग प्यारा केसरिया 

प्रशांत भाव से खुशबू ले लूं

मन में मकरंद के लिए ।

बसंत की निर्मल बहार में 

स्थिर पुष्पों की राग में 

मन के मीत और गीत लिंखु 

सुर के सात संगम के लिए ।

चुभने का भय कहां

कोमल है यह लग रहा 

गहराई कितनी यह जान लूं 

जीवन में गहरे रंगों के लिए ।।

✍️ योगेंद्र सिंह राजावत 

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