सागर के मध्य में या रेगिस्तान के ठीक बीच में अथवा यों कहें कि आकाश व पाताल के बीच इन सभी जगहों पर मैं यह जान पाता हूं की मैं क्या हूं? मेरा अस्तित्व क्या है? वास्तव में आ रही और जा रही साँस के मध्य जीवन में लिखे गए पैराग्राफ की पंक्तियों और उनमें घुले शब्दों की उन मात्राओं के ठीक पहले के भाव को समझ लेना स्वयं के लिए कितना आवश्यक है । वर्ष 1977 में अमेरिका की अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने अंतरिक्ष यान भेजा जिसका नाम था वाइजर । यह यान धरती से आठ अरब किलोमीटर की दूरी लगभग 44 वर्षों में तय करता है और 1990 में पृथ्वी की तस्वीर भेजता है जिसमें पृथ्वी राई के दाने जितनी नजर आ रही है । हां सचमुच वही पृथ्वी जिसके तीन चौथाई भाग पर पानी भरा हुआ है और लगभग चौथाई भाग पर धरातल है इस चौथाई भाग मैं भी सैकड़ो देश अपनी हिस्सेदारी का दावा करते हुए भयंकर युद्धों एवं भीषण संग्राम के साथ अपनी जीवनशैली और व्यवहार शैली को गति दे रहे है और विरोधी विचारधाराओं के युद्धजन्य हिंसक संघर्ष से ग्रस्त है । हिरोशिमा और नागासाकी परमाणु हमलों के बाद हमने अनेकों शांति वार्ताएं की और यहां तक कि सहमति से समझौते पर भी हस्ताक्षर किए परन्तु 77 वर्षों के इस कालखंड में भी कुछ खास नहीं बदला बस हम आधुनिक और जैविक हथियारों के जखीरे में तेजी से वृद्धि कर रहे है ताकि कौन, किसे और किस हद तक तबाह कर सके शायद इसके अलावा तो क्या परिणाम चाहते है पता नहीं।हमारा भौगोलिक अस्तित्व तो पृथ्वी के चौथाई भाग पर चींटी के समान भी नहीं । फिर तो पृथ्वी और ब्रह्मांड में अपनी दावेदारी का निज परीक्षण करना नितांत आवश्यक है । आज रूस बनाम यूक्रेन, इजराइल बनाम फिलिस्तीन,अफ़ग़ानिस्तान बनाम पाकिस्तान ,अमेरिका बनाम ईराक, चीन बनाम तिब्बत ,उत्तर कोरिया बनाम दक्षिणकोरिया इसके अतिरिक्त लीबिया ,सीरिया , बांग्लादेश और भी कई ऐसे राष्ट्र और शहर है जो अपने आंतरिक संघर्षों की भेंट चढ़ चुके हैं और यदि किसी पर गंभीर संकट है तो वह है मानवता । क्या यही परिणति रहेगी अनसुलझी-मारक , घातक या विनाशक शक्ति की? तो अब क्या सर्वनाश ही माना जाएगा इसका अंतिम न्यायोचित औचित्य?! फिर अंतर्मन के दर्पण में बने वास्तविक और सीधे प्रतिबिंब जो अवचेतन में जागृत सुषमा-भाव से आलोकित वैदिक सत्य की 'नेति-नेति' की अवधारणा, शाश्वत भाव से झंझोड़ने लगता है कि, 'यह या यहां नहीं' अंतिम सत्य/ नियति इससे बहुत आगे है! और मानवी प्रज्ञा के प्रयास सभी बाधाओं/ विफलताओं-सफलताओं को खुले माथे अंगीकार करते हुए, किंचित हर बार, फिर से तलाशने/परिभाषित करने चल पड़ती है शायद कोई हवा का ऐसा झोंका आए जो आशाओं के पारदर्शी स्वप्निल संकल्प से लबालब हो जो हर स्थिति-परिस्थिति से मानवोपयोगी तत्वों को सर्वोपरि रखने का प्रशांत भाव जागृत करें । हमें ज्ञात है भारत ने हरक्यूलिस C17 ग्लोबमास्टर विमान को अमेरिका से खरीदा क्योंकि भारी मात्रा में संसाधनों का परिवहन कर सके । यही विमान कॉविड महामारी के दौरान वसुधैव कुटुंबकम की भावनाओं का निर्वाह और निष्काम भाव से सेवा करते हुए पूरे विश्व भर में मेडिसिन और जरुरी सामान आपूर्ति करता हुआ दिखा । आज सार्थक व निरर्थक औचित्य से जूझते हुए, हर संभव सामंजस्य व संतुलन की तलाश में अपनी आदिम अनथक-अजेय जिजीविषा के बिल्कुल मध्य में समस्त मानवीय मूल्यों के संरक्षण एवं प्राणिमात्र के प्रति दया, परोपकार एवं सेवा का भाव के साथ मिट्टी के कणों से खुले आसमान तक शांति स्थापित हो खुशहाली हो ।
पाली मारवाड़
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