स्नेह अतुल,धन्य ये भुवन
ज्योतिर्मय विजय अभिनंदन,
बन कर सुर, गीत लहराएं
आओ आशा के दीप जलाएं।
सूखे उपवन को, हरित करें हम
हर आँगन में, खुशियाँ भरें हम
बन कर पुष्प, सुगंध फैलाएं
आओ आशा के दीप जलाएं ।
मुक्त कर मन के, बंधन हम
केशव का करें, नित वंदन हम
व्याकुल मन को, प्रसन्न कर आएं
आओ आशा के दीप जलाएं ।
भीतर ही भीतर सब में
जो फैल रही निशा हरदम
उस निशा का तमस हटाएं
आओ आशा के दीप जलाएं ।
✍️योगेन्द्र सिंह राजावत
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