"आत्मविश्वास"
हृदय में पल्लवित प्रेम राग से
संगीत के सुर सजाते चलो ।
आजाद कर दूजों से अपने अंतर्मन को
खुद को खुद से मिलाते चलो ।
वज्र कठोर संकल्प से चीरकर दुर्गम पहाड़ों को
सुगम रास्ते बनाते चलो ।
प्रलय के काल में भी प्रणय के गीत गाते हुए
सागर की लहरों से टकराते चलो ।
आत्मा की नवचेतना पर अड़िग ध्यान लगाते हुए
तप , साधना के ध्वज लहराते चलों ।
अमावस की काली रात में भी राहगीर बस,
दीप आशाओं के जगमगाते चलों ।
✍️योगेंद्र सिंह राजावत
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