स्वरचित हिंदी कविता "संघर्ष" Hindi poem Sangarsh Hindi kavita sangarsh



                          "संघर्ष"


घनघोर अंधेरी रातों में जिसने ,दीपक जलाया है 

पग-पग पर स्वयं अपना, उसने इतिहास बनाया है |

कहाँ सरल है जीना जग में ,

कुछ पाना ,कुछ खोना है ।

बस अपने दम पर पारस बनकर ,

भरते जाना सोना है ।

नई राह आसान मंजिल की ,

कदम कदम बढ़ चलना है ,

दिख रहे हैं भीड़ में फिर भी ,

पल भर में आगे निकलना है ।

जब हेतू है बहुत बड़ा लेकिन

जिसने भी उसे पाया है ,

पग-पग पर स्वयं अपना, उसने इतिहास बनाया है ।

एक समय बाज भी अपना, 

जीवन संकट में जब पाता है

 धैर्य ,तपस्या और सयंम से ,

स्वयं को खूब रिझाता है ,

दुख,कष्ट और पीड़ा  सहकर भी

वह अपने प्राण बचाता है,

उतना ही जीवन आगे फिर,

उसकी झोली में आता है ।

सार स्वयं के जीवन का जिसके ,

अंतर्मन में आया है ।

 पग-पग पर स्वयं अपना उसने ही इतिहास बनाया है ।।


✍️योगेंद्र सिंह राजावत




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