घनघोर अंधेरी रातों में जिसने ,दीपक जलाया है
पग-पग पर स्वयं अपना, उसने इतिहास बनाया है |
कहाँ सरल है जीना जग में ,
कुछ पाना ,कुछ खोना है ।
बस अपने दम पर पारस बनकर ,
भरते जाना सोना है ।
नई राह आसान मंजिल की ,
कदम कदम बढ़ चलना है ,
दिख रहे हैं भीड़ में फिर भी ,
पल भर में आगे निकलना है ।
जब हेतू है बहुत बड़ा लेकिन
जिसने भी उसे पाया है ,
पग-पग पर स्वयं अपना, उसने इतिहास बनाया है ।
एक समय बाज भी अपना,
जीवन संकट में जब पाता है
धैर्य ,तपस्या और सयंम से ,
स्वयं को खूब रिझाता है ,
दुख,कष्ट और पीड़ा सहकर भी
वह अपने प्राण बचाता है,
उतना ही जीवन आगे फिर,
उसकी झोली में आता है ।
सार स्वयं के जीवन का जिसके ,
अंतर्मन में आया है ।
पग-पग पर स्वयं अपना उसने ही इतिहास बनाया है ।।
✍️योगेंद्र सिंह राजावत
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