आत्माभिप्रेरित करती स्वरचित हिन्दी कविता hindi poem hindi kavita

 



गिरकर उठा हूं , अब उठकर चलना जानता हूं,

पर्वत सी उद्विग्नता से  निकलना जानता हूं ।


मैं नहीं दरख़्त वो, जो विमुख हवा के झोंके से 

कैसे सम्हलना है आंधियों से,हरवक्त जानता हूँ ।


निशदिन फैला रहा चंदन सी महक चंहुओर,

बाँस के कारण उठी दावानल जानता हूँ ।


चल पड़ा हूं राहगीर बनकर पूण्य की राह पर

पाप के कारण घरों के, मैं हश्र जानता हूँ ।


जिनमें नहीं आस्था ईश्वर के प्रति कोई

नेस्तनाबूद हो गए ऐसे नश्वर जानता हूँ ।


पुष्पों को बाँटने से भी हाथ सुगन्धित होते है

कंई महकते ऐसे, मैं हाथों को जानता हूँ ।


लांग जाती है पहाड़ चींटी भी हौसला पाकर

पुनर्बलन की मैं वह ताक़त जानता हूँ ।


गिरकर उठा हूं , अब उठकर चलना जानता हूं,

पर्वत सी उद्विग्नता से  निकलना जानता हूं ।

✍️योगेंद्र सिंह राजावत







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