स्वरचित हिंदी कविता "जिंदगी का मंजर क्या है?" Hindi poem Jindagi ka manjar

 


अक्सर पूछता हूँ मैं ही मुझसे

इस जिंदगी का मंजर क्या है ?

मौलिक जीवन जीने की आस में 

तपती दोपहरी धूप में 

पड़े हैं जिनके पांव में छाले 

उनकी बेबसी के अंदर क्या है ?

आखिर इस जिंदगी का मंजर क्या है ?

नाव संग पतवार लेकर 

जो चल पड़ा था दरिया पार करने

फिर अंतर्मन में जगी

जिसको पार करने की जिद्द

वो भावनाओं का विशाल समंदर क्या है?

आखिर इस जिंदगी का मंजर क्या है ?

भागा जा रहा हर कोई इस भागदौड़ में

करने को संकलित माना कुबेर का धन

ख़्याल आ रहा बस एक ही, ख्वाबों में 

कि आज स्वर्ण से उत्तम ये अलिंजर क्या है?

सच बताओं इस जिंदगी का मंजर क्या है ?

✍️योगेंद्र सिंह राजावत








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