' खेत '
खेतो पर कुछ हल चल थी
कुछ हल चल रहे थे
कुछ चहल पहल थी
बाबा बारिश को निमंत्रण दे रहे थे
मिट्टी खुद चुकी थी खेत की
बगुले कीड़े चुग रहे थे
अब तो बीज़ बिखरे जा रहे थे
आसमान से कुछ आयेगा
धरती आसमां को पुकार रही थी
बादल घने थे पर हवा तेज थी
पुरा दिन बिता
ना धुप खिली ना बरखा आई
सुबह फिर वही आलम था
बाबा फिर खेत पर थे
उसी बारिश के इंतजार में
धरती फिर आसमां को पुकार रही थी
कुछ पल बीते फिर शाम आई
फिर रात भी चली गई
पर बारिश ना आई
बाबा अगली सुबह फिर खेत पर थे
मायुस से धरती से बत्तिया रहे थे
पर बादल किसी और ही धुन में थे
आज धरती तक आ पहुंचे
वो पहाड़ो को ढ़क रहे थे
बाबा को लगा जैसे किसी ने
गंगाजल छिड़का हो चहरे पर
आज किसानों में चहल पहल थी
आज फिर खेत पर हल चल थी।
✍️ महीपाल सिंह राजावत
पाली ,मारवाड़
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